Home Sarna Religious Movements News आदिवासी क्षेत्र में किसके हाथों में है,शासन की शक्तियां!क्या कहता है पी पेशा कानून 1996 !जाने और समाज को आगे बढ़ाने में भागीदार बने…

आदिवासी क्षेत्र में किसके हाथों में है,शासन की शक्तियां!क्या कहता है पी पेशा कानून 1996 !जाने और समाज को आगे बढ़ाने में भागीदार बने…

by Johar TV
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आजादी के अमृत काल काल में पी पेशा कानून 1996 के मूल अवधारणा अनुसूचित क्षेत्रों में “ना लोकसभा ना विधानसभा,सबसे बड़ी आदिवासी परंपरागत ग्राम सभा” के तहत शासित प्रशासित देश की 09 प्रतिशत यानी 13 करोड़ आबादी व 700 से अधिक जनजाति समुदाय वाले देश के मूल निवासी आदिवासियों की समाजिक आर्थिक शैक्षणिक स्वास्थ्य की जमिनी यथार्थ स्थीति क्या है ?
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प्राकृतिक और विकृति का द्वंद।
भाग(01) आदिवासी मुगल एवं अंग्रेज शासन काल में अपने भौगोलिक निवास क्षेत्र में अपने रूढ़िवादी परंपरागत स्वशासी व्यवस्था के अधीन स्वशासित थे।
अंग्रेजों ने आदिवासी इलाकों में विद्रोह, परस्पर टकराव, इन इलाकों में शांति व सुशासन हेतु आदिवासियों के पक्ष में जल जंगल जमीन के अधिकारो संबंधित कई कानून बनाकर उनके अधिकारो को अक्षम: रखा व उनके परंपरागत रूढ़िवादी व्यवस्था को वैधयानिक व कानूनी रूप से मान्यता दी।
भाग(02) आजाद भारत में संविधान सभा ने आदिवासी इलाकों के सुरक्षा हेतु अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन कानून का अध्ययन कर पांचवी, छठवीं अनुसूची के रूप में इसे यथावत रखा। 1996 में भारतीय संसद द्वारा भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के लिए पारंपरिक रूढ़िवादी ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत अनुसूचित क्षेत्र का विस्तार अधिनियम कानून बनाया। जिसे पी पेशा कानून 1996 कहते हैं। पेशा कानून को आसान भाषा में समझे तो, इस कानून की तीन प्रमुख बातें है ।
(क) जल जंगल जमीन व भूमि के आदिवासियों के नैसर्गिक अधिकार को सख्त बनाते हुए अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन व्यवस्था को एकाधिकार देते हुए। प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व एवं प्रवधन का अधिकार आदिवासी व उनके परंपरागत रूढ़िवादी ग्राम सभाओं को दिया गया।
(ख) स्थानीय स्तर पर समस्त सामाजिक व आर्थिक विकास की योजनाओं, कार्यक्रमों, परियोजनाओं में परंपरागत ग्राम सभा की भागीदारी व अनुशंसा को जरूरी किए गए।
(ग) विकास परियोजनाओं के लिए अनुसूचित क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण करने के पूर्व ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य । परियोजनाओं से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास का अधिकार, लघु जल संसाधनों के स्वामित्व, प्रवधन वन उपज के स्वामित्व का हक, खनिजों का खनन उत्खनन, नीलामी का हक, सहुकारी प्रथा पर नियंत्रण का अधिकार, क्षेत्र के स्थानीय एवं जनजाति उपयोजनाओं से प्राप्त राशि के तहत अपने विकास एवं नियोजन का हक, गरीबी उन्मूलन का हक, सरकारी योजनाओं,अनुदानों के लाभार्थियों का चयन का हक,स्थानीय विवादों का निपटारा आदि प्रमुख है।

भाग(03) पी पेशा जैसे आदिवासियों के प्रति सख्त अवधारणा वाले कानूनो के बावजूद, आज धरतीपुत्र मूलनिवासियों की देश में सामाजिक स्थिति परिस्थिति क्या है!
(क) जातीय भेदभाव व नसलीय अत्याचार:
देश के सामाजिक व्यवस्था में आज भी आदिवासियों के साथ जातीय भेदभाव व नसलीय अत्याचार बदस्तूर जारी है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गांव वालों को पुलिस एवं शस्त्र बलों द्वारा दमन व अत्याचार निरांतर जारी है।मध्य प्रदेश के आदिवासी व्यक्ति के सिर पर पेशाब कांड, मणिपुर एवं असम में महिलाओं को उत्पत्ति भीड़ द्वारा निर्वस्त्र कर बलात्कार करना।
इसका ज्वलंत उदाहरण है।
(ख) जल जंगल जमीन व भूमि के नौसर्गिक अधिकार से वंचित करना: आजादी के इन 77 वर्षों में आदिवासियों को देश के अन्य क्षेत्र में विकास के नाम पर निरंतर अपने जमीनों से विस्थापित किया गया। अगर राष्ट्रीय अनुपात में विस्थापितों का अनुमान करे तो 02 में से 01 आदिवासी विस्थापित हुए हैं।उनसे जमीन छीनी गई है।
(ग) जीवन स्तर व सरकारी योजनाएं : योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा पंचवर्षीय योजना व संविधान के अनुच्छेद 275 (01) के तहत ट्राइबल सब प्लान के अंतर्गत आवंटित पैसों का इस्तेमाल आदिवासियों (अनुसूचित जनजाति) का समग्रह विकास करना है। इस पैसों से ऐसी योजनाएं बनाई जानी चाहिए, जिसे आदिवासियों समुदाय की सीधी तौर पर फायदा हो। इनका जीवन स्तर सुधरे, पलायन रुके, भुखमरी, कुपोषण से समाज निजात पाए, रोजगार के अवसर प्राप्त हो, अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले, स्वास्थ सुविधाएं बढ़ाई जाए,पेयजल,सड़क आवास जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार किये जाए। परंतु धरातल पर इन पैसों का विकास के नाम पर बंदरबांट हो रही है।
(04) रोजगार की स्थिति:
आदिवासी समाज को दो जून की रोटी के लिए देश के ईटा भट्टों में मजदूरी,गांव में खेतिहर मजदूरी,शहरी क्षेत्र में दैनिक मजदूरी कर पेट पालने को मजबूर है।
(05) समाज में शिक्षा की स्थिति:
वर्ष वर्ष 1961 में जनजातीय आबादी में साक्षरता का प्रतिशत केवल 8.5% था। 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासी आबादी के बीच सक्षारता दर बढ़कर 63 .01% हो गई है। अभी भी आजादी की अमृत काल में 37% आदिवासी निरक्षर हैं। और आदिवासी क्षेत्रों में गुणवत्ता वाले शिक्षा का घोर अभाव है।
(06) समाज में कुपोषण की स्थिति:
अन्य पिछड़े वर्गों के मुकाबले आदिवासियों में इसकी तादाद काफी बड़ी है ।भारत के करीब 48 से 50 लाख कुपोषित बच्चों में से 80% बच्चे झारखंड ,छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र ,तेलंगाना ,गुजरात ,मध्य प्रदेश,के आदिवासी है,और 22% बच्चों का जन्म निर्धारित मापदंड से कम वजन में होता है।
(07) आदिवासी समाज में गरीबी की स्थिति:
आदिवासी आजादी की 45% आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। और इनका मासिक आय 2000 रुपये से भी कम है।

निष्कर्ष व विचारणीय प्रश्न

पी पेशा कानून 1996 के मूल अवधारणाओं के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में शासन और प्रशासन आदिवासियों के हाथों में होना चाहिए छठी अनुसूची क्षेत्रो(सिक्स शेड्यूल)के पेटेंट पर आदिवासी परमरदर्शी परिषद(TAC) को मजबूती देते हुए आदिवासी स्वशासी जिला परिषद से लेकर परंपरागत ग्राम सभाओं के माध्यम से विकास कार्यों के सारी राशि नियम अनुसार पेसा कानून के मूल अवधारणा “ना लोकसभा, ना विधानसभा, सबसे बड़ी ग्राम सभा” के माध्यम से खर्च होनी चाहिए । परंतु बड़ी विडंबना है कि इन कानून और संवैधानिक प्रावधानों को तक में रखकर आदिवासियों जल,जंगल,जमीन के नैसर्गिक अधिकारों से वंचित कर दोहन शोषण कर उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन आजाद देश में व्यापक रूप से किया गया है।
सोचे विचारे व मंथन करे ।
जोहार टीवी भारतवर्ष के लिए समाचार संग्रहकर्ता, लेखक, समाजसेवी संजय पाहन का विचार।
देखते रहे …
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प्राकृति और विकृति का द्वंद।

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