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उपेक्षा का दम्भ क्यों झेल रही है, कुरुख उराँव भाषा…

by Johar TV
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कुरुख उरांव भाषा।
संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के मांग के प्रति इतने उदासीन क्यों है।
तथाकथित उरांव अभिजन वर्ग, समाज के राजनेता, सामाजिक संगठने व सरकारे।

(01) कुड़ुख या कुरुख,उरांव एक आदिकालीन आदिवासी उरांव जनजाति समूह की भाषा है।
(02)जनजातीय (आदिवासी) भाषा कुड़ुख उरांव देश दुनिया में लगभग पच्चीस लाख लोगों द्वारा बोली जाती है।
(03) भारत देश में यह छत्तीसगढ़, झारखंड, बंगाल, असम, बिहार, अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश व अन्य देशों बंगलादेश, भूटान व नेपाल में बोली जाती है
(04)यह द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है। यानी लगभग पचास से सत्तर हजार वर्षा का इतिहास।
(05) सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक भारत देश में लगभग पच्चीस लाख कुरुख उरांव भाषा बोलने वाले रहते हैं।
(06) श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची,झारखंड में कुरुख भाषा विभाग स्थापित है, व यहा उच्च शिक्षा की पठन- पाटन इस विषय में होती है।
(07) झारखंड व पश्चिम बंगाल प्रदेशों में यह द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।
(08) इसकी अपनी लिपि तोलोंग सिकी नाम से विकसित होने की अवस्था में है। इसके जनक डॉक्टर नारायण उरांव हैं।
(09) कुरुख भाषा का एक समृद्ध साहित्य है।
(10) इस पर पहले किताब 1874 में लिखी गई थी।
(11) एशियाटिक सोसाइटी ने इसे प्राचीनतम जनजाति आदिवासी भाषा के रूप में मान्यता दी है।
(12) इसके प्रमुख साहित्यकार रहे हैं विलियम्स जॉन्स, फेलिक्स,फाडिनेड हान,ग्रिनाड, माइकल तिग्गा, बिहार लकड़ा, दबले कुजूर, इंद्रजीत उरांव, स्वर्णालता प्रसाद, ब्रिज बिहारी कुमार, तेजू भगत, थोथे उरांव, जमुआ भगत, प्रहलाद तिर्की आदि रहे हैं।
(13) सन 2005 में कुरुख लेखक बिहार लकड़ा को कुरुख भाषा में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा भाषा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है।
उन्होंने कुरुख टांडी नाम से किताब लिखा है।
(14)यूनेस्को ने लुप्तप्राय भाषाओं की सूची में असुरक्षित स्थिति के रूप में कुरुख भाषा को चिन्हित किया गया है।

इन विशेषताओं के बाद भी भारत सरकार सांस्कृतिक मंत्रालय के तथाकथित।
संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की भाषाई मापदंड की वैसे भाषा जो पंद्रह सौ वर्ष पुरानी हो, जिसका समृद्ध साहित्यिक इतिहास हो,एक बड़ी वर्ग द्वारा बोली जानी चाहिए, देश के बड़े क्षेत्र वर्ग में बोली जनी वाली भाषा होनी चाहिए का कुरुख उरांव भाषा पूरी तरह से सभी मापदंडो को पूरा करती है।
परंतु दुर्भाग्य है कि तथागत उरांव अभिजन वर्ग, समाज के राजनेताओं, सामाजिक संगठनों व विभिन्न सरकारों के उदासीन रवियों के कारण यह अभी तक संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल होने से वंचित है।
विगत दिनों श्री जी के रेड्डी, विभागीय मंत्री, सांस्कृतिक मंत्रालय,भारत सरकार को इस संबंध में मांग पत्र कोकराझार,असम के निर्दलीय सांसद श्री नवो कुमार सारानिया द्वारा श्री संजय पाहन के पत्र के आलोक में सरकार के संज्ञान में रखा है।

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