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जल,जंगल,जमीन के मालिक मजदूर बनने को क्यों मजबूर?

by Johar TV
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जल जंगल जमीन के मालिक,क्यों धंगर(नौकर) बनने को मजबूर !
दिल थाम कर सोचिए !
क्यों लड़ी थी, हमने झारखंड अलग राज्य की लड़ाई !
53 बरसों की लंबी अलग राज की लड़ाई के बाद, वर्ष 2000 में झारखंड राज्य की स्थापना हुई। परिकल्पना थी आदिवासी,मूलवीसीयो की जल-जंगल-जमीन,अबुआ दिशुम,अबुआ राज(अपना प्रदेश,अपना राज) के सपने पूरे होंगे, आदिवासी राज्य स्थापित होगी,संविधान संबद्ध नियम कानून के तहत ठेका पट्टा,बाजार हॉट, नौकरी चाकरी व प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों का अधिकार होगा, सुशासन होगा, खुशहाली आएगी, प्रत्येक घर को रोजगार या खनिज लवणों की रायल्टी का अधिकार मिलेंगे!

भाग (01) संवैधानिक मौलिक अधिकार…
ट्राईबल्स ड्रीम्स
मजदूर भी हम, मालिक भी हम ।
“एक सहकारी आंदोलन”
भारतीय संविधान के भाग 03 के अनुच्छेद 12 में सहकारी समिति (को-ऑपरेटिव सोसाइटी)को मौलिक अधिकार दिया हुआ।
सहकारी समिति (को-ऑपरेटिव सोसाइटी) क्या है ?
(क) भारत सरकार की कंपनी या निगम जैसे:IOCL,HPCL,BCCL,ECL,BHEL,ONGC,NTPC,SAIL,ONGC,MECON,BSNL,HEC इत्यादि।
(ख) प्राइवेट लिमिटेड कंपनी/ बहुराष्ट्रीय कंपनी जैसे: टाटा,बिरला,अडानी, रिलायंस,एयरटेल,जिंदल,इंफोसिस एस्सार,विप्रो इत्यादि।
(ग) सहकारी समिति (को-ऑपरेटिव सोसाइटी) जैसे: अमूल, सुधा या ट्राईबल्स ड्रीम (आदिवासियो की कंपनी, गरीब-जनों की कंपनी)
भाग (02): संवैधानिक अधिकार…
भारतीय संविधान के पांचवी अनुसूची, जिसके तहत जल,जंगल ,जमीन के अधिकार आदिवासियों को दिए गए हैं। तभी सार्थक हो सकते हैं। जब आदिवासी अपना सहयोग समिति( को-ऑपरेटिव सोसाइटी)के मध्यम से वे खदान कार्य,वन उपज का संग्रह व व्यापार, कृषि उत्पादों का उचित मूल्य से क्रय-विक्रय इत्यादि का लाभ ले सकते हैं ।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक समता जजमेंट 1997 में निर्णय है कि अनुसूचित क्षेत्र में कोई भी मीनिंग कार्य जनजाति सहयोग समितियां ही करेंगे, वह हाथ से कोडे या मशीन से कडने का अधिकार केवल आदिवासियों का है।व झारखंड लघु खनिज समानुदान नियमावली 12(3) में बालू की बंदोबस्ती 51% जनजाति सदस्यों वाले सहयोग समिति को ही देने का प्रावधान है तथा अनुच्छेद 13 में पत्थर खदानों की लीज पट्टा सर्वप्रथम 51% अनुसूचित जनजाति सदस्य वाले सहयोग समिति को ही दिए जाने का प्रावधान है। भारतीय संविधान के 05वी अनुसूची में उल्लेखित है कि अनुसूचित क्षेत्र में खनिज पदार्थ खनन का अधिकार केवल आदिवासियों /आदिवासियों सहयोग समिति को ही प्राप्त है ।पी -पेसा कानून 1996 में भी खनन का नैसर्गिक अधिकार आदिवासी एवं आदिवासियों के ग्राम सभा को प्राप्त है ।
भाग (03): संवैधानिक प्रयास …
ट्राईबल्स ड्रीम्स, मजदूर भी हम, मलिक भी हम, एक सहकारी अंदोलन विगत एक दशक से
झारखंड,पश्चिम बंगाल,असम,उड़ीसा, छत्तीसगढ,मध्यप्रदेश, तेलंगाना, जैसे अनुसूचित राज्यों के अनुसूचित आदिवासी बहुल जिले में जल जंगल जमीन संबंधित संवैधानिक अधिकारों को पूर्ण रूप से लागू करने हेतु इन क्षेत्र में आदिवासी सहयोग समिति (को- ऑपरेटिव सोसाइटी) के गठन व निर्णय हेतु मार्गदर्शन, दिशा -निर्देश, प्रोत्साहन व प्रचार-प्रसार कर रही हैं।
ताकि आदिवासी समाज संगठित होकर स्वावलंबी,आत्मनिर्भर,आर्थिक स्वतंत्रता व जल ,जंगल ,जमीन के नौसर्गिक अधिकार पा सके। ट्राईबल्स ड्रीम्स के मार्गदर्शन में झारखंड के 13 अनुसूचित जिलों में जिला व प्रखंड स्तरीय आदिवासी-मूलवासी सदस्यों वाले सहकारी समिति( को-ऑपरेटिव सोसाइटी) का गठन कर चुकी है ।जिन में 24,200 परिवार निबंधित सदस्य है ।
उड़ीसा एवं तेलंगाना राज्य में भी आदिवासी सहयोग समिति का गठन हो चुका है एवं बाकी अनुसूचित राज्यों में निबंधन की प्रक्रिया चल रही है ।
भाग 04: संवैधानिक हिस्सेदारी..
झारखंड में विगत एक दशक से ट्राईबल्स ड्रीम्स, मजदूर भी हम, मालिक भी हम, एक सहकारी आंदोलन,
आदिवासियों को पदत उल्लेखित संविधानिक प्रावधानों, अनुच्छेद, कानूनो व क्षेत्रीय नियमावली के आधार पर झारखंड के अनुसूचित जिलों रांची ,लोहरदगा ,गुमला, लातेहार ,सिमडेगा, पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम ,सरायकेला -खरसावां, खूंटी ,जामताड़ा ,दुमका ,साहिबगंज, पाकुड़ व गैर-अनुसूचित जिला धनबाद में बालू घाटों के बंदोबस्त हेतु लगातार जन आंदोलनो, विभिन्न सरकारों से परस्पर वार्ता कर संवैधानिक हिस्सेदारी की मांग कर रही है, साथ ही सरकारी स्तर पर परस्पर निकले गए निविदाओं में शामिल होकर आदिवासी सहकारी समितियां (को-ऑपरेटिव सोसाइटीयो) को कानून संबंद्ध बालू घाटों की आवंटन मिल सके। ताकि बालू उत्खनन- विपणन से प्राप्त रॉयल्टी लाभ इनके 24200 सदस्य गरीब परिवारों व समस्त झारखंड वासियों संवैधानिक नैसर्गिक अधिकारों के तहत हिस्सेदारी मिल सके ताकि झारखंड गठन के परिकल्पना व उद्देश्य पूरा हो सके।
भाग(05) संवैधानिक अधिकारों का हनन ….
परंतु दूरभाग्य है। ट्राईबल्स ड्रीम मजदूर भी हम मालिक भी हम, एक सरकारी आंदोलन के जन आंदोलन, तत्पश्चात वार्ताओं में बाद बालूरघाटो की आवंटन हेतु समिति प्रेस मीडिया में देने के बावजूद झारखंड के तत्कालीन अर्जुन मुंडा ,हेमंत सोरेन व रघुवर सरकारों ने इन संविधानिक अधिकारों को दरकिनार करते हुए बाहर से आए पूंजीपतियो को बालू घाटों के बंदोबस्ती असवैधानिक रूप से कर दिया गया ।

विचारणीय प्रशन :सोचे विचारे और मंथन करें!
क्या ऐसे झारखंड के लिए हमने झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी थी।अपने संवैधानिक हक-अधिकारों को जानने के लिए देखते रहें!जोहार टीवी भारतवर्ष!
प्राकृति ओर विकृति का द्वंद!
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जोहार जय धर्मेश

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