Home Sarna Religious Movements News राम मंदिर, धारा 370, फर्जी राष्ट्रवाद बेअसर…संविधान के रक्षा, मणिपुर, हसदेव और लद्दाख का पड़ रहा है असर….

राम मंदिर, धारा 370, फर्जी राष्ट्रवाद बेअसर…संविधान के रक्षा, मणिपुर, हसदेव और लद्दाख का पड़ रहा है असर….

by Johar TV
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जाने प्रथम चरण के देश के आदिवासी मतदाताओं का रुझान।

राम मंदिर, धारा 370, फर्जी राष्ट्रवाद बेअसर……
संविधान की रक्षा,मणिपुर, हसदेव और लद्दाख का हो रहा है असर….
क्या संकेत दे रहे हैं प्रथम चरण के आदिवासी क्षेत्रो के चुनावी रुझान….
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क्या देश के आदिवासी अब अपने जनमुद्दों आधारित मतदान करना जान गए हैं ??
दिनांक 19 अप्रैल 2024 देश के नॉर्थ ईस्ट राज्यो व पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश,राजस्थान, महाराष्ट्र व तमिलनाडु के 102 लोकसभा के आदिवासी बहुल व 18 आदिवासी आरक्षित क्षेत्र का प्रथम चरण के चुनाव के रुझानो से स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं की देश के आदिवासी राम मंदिर,धारा 370, फर्जी राष्ट्रवाद,विश्वगुरु,जैसे खोखले मुद्दू को नाकरते हुए संविधान की रक्षा, मणिपुर,हसदेव,लद्दाख, सरना धर्मकोड, महंगाई, बेरोजगारी जैसे जन मुद्दों लिए सत्ता परिवर्तन हेतु गोलबंद होकर मतदान कर रहे हैं।
तथ्य(01): प्रथम चरण के आदिवासी बाहुल्य व आरक्षित वाले महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के 04, राजस्थान के 03, मध्य प्रदेश के आरक्षित 05 में से 02, पश्चिम बंगाल के आरक्षित 02 में से डूवर्स इलाके के 01, लक्षद्वीप के 01, नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में असम के 02, व अन्य लोकसभा क्षेत्र के रुझानों मे सत्ता पक्ष, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की उद्घोषणाओं “अबकी बार 400 पार, संविधान बदलने के लिए” के आशंकाओं के करण भारी संख्या में आदिवासी गोलबंद होकर सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान किए हैं।
तथ्य (02): आदिवासियों के पूर्वज भगवान बिरसा मुंडा, जतरा टाना भगत, वीर बुधु भगत, वीर बांटा सिद्धू कान्हू, तेलंगा खाडीया,बाबा तिलका मांझी, टाटिया भील, रानी दुर्गावती ने अपने लहू से उलगुलान कर अपने व आपने आने वाले पीढ़ी के लिए जल जंगल जमीन की रक्षा हेतु अंग्रेजों से लड़कर 1874 में ही शेड्यूल जिला एक्ट ले लिया था।
जिसे बाबा साहब अंबेडकर ने यथावत रखा।
अपने पुरखों के खून से सनी भारतीय संविधान के प्रति आदिवासी समाज विशेष श्रद्धा व सम्मान रखता है। संविधान में किसी भी तरह का परिवर्तन आदिवासी समाज को मान्य नहीं होगा।
इसीलिए समाज आदिवासी समाज गोलबंद होकर सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान किए है।
तथ्य (03): वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा पूरे भारत देश में गैर अनुसूचित जातियों को वोट बैंक हेतु आदिवासी बनाने की मुफ्त रेवाड़ी,, लोकुर समिति (1965) के मापदंडो को नजरअंदाज कर बाट रही है, सूची में अनुसूचित (शामिल) कर रही है।
जिसका विषम उदाहरण मणिपुर राज्य है।
तथ्य (04) छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल व लद्दाख के सोनम वंचुक के आंदोलन।
विगत 10 वर्षों से आदिवासी समाज वर्तमान सरकार के आदिवासियों के जल जंगल जमीन के अधिकारों को हनन करते हुए अपने कॉर्पोरेट दोस्तों के लिए हसदेव में हजारों आदिवासियो को विस्थापित कर पर्यावरण को नष्ट कर 10 लाख पौधे काटकर अदानी की कंपनी द्वारा जबरन खनन करना व लद्दाख के आदिवासियो के मौलिक अधिकारों का हनन कर उसके सामाजिक भौगोलिक पृष्ठभूमि को मिटाने का जो षड्यंत्र वर्तमान सरकार कर रही है उसके विरुद्ध भी आदिवासी समाज गोलबंद होकर सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान किए हैं।
तथ्य(05) भारत देश के नई सांसद भवन के शुभ उद्घाटन में भारत के प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति माननीय द्रौपदी मुर्मू को ना बुलाकर वर्तमान सरकार ने भारत के महामहिम राष्ट्रपति को ही नहीं, पूरे आदीवासी समाज के मान सम्मान को ठेस पहुंचाई है। आदिवासियों के प्रति दोहरी मापदंड का पर्दाफाश इन कृतियों से हो गया है। उनके दोहरे चरित्र के विरुद्ध आदिवासी समाज गोलबंद होकर सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान किए है।
तथ्य(06) झारखंड व पश्चिम बंगाल सरकारो की अनुशंसा,
भारतीय संविधान की अनुच्छेद 25(1) अंतःकरण से धर्म को अबाद रूप रूप से मानने, प्रचार प्रसार करने व महारजिस्टार जनरल,जनगणना का कार्यालय, नई दिल्ली के नियमों मापदंडों KA तिरस्कार करते हुए सरना धर्म को मुख्य धर्म कॉलम में सूचीबद्ध नहीं करना, यहां तक की राजी पाड़हा सरना प्रार्थना सभा, भारत के शिष्टमण्डल को विधिवत अनुमति के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा अंतिम समय में साजिश कर अपने आदिवासी समाज के व भारत देश के प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति महामहिम द्रोपति मुर्मू से नहीं मिलने देना व देश के करोड़ों आदिवासियों के धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ करने के कारण भी देश के आदिवासी समाज गोलबंद होकर सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान कर रहे हैं।

विचारणीय प्रश्न ??
अपने हक अधिकारों के लिए इन आदिवासी राज्यों की तरह, बाकी आदिवासी राज्य के मतदाता गोलबंद होकर, सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान करेंगे।

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प्राकृतिक और विकृति का द्वंद।
जोहार।

समाचार संकलनकर्ता और समाजसेवी संजय पाहन का वक्तव्य:
कांग्रेस शासन काल में भी आदिवासियों के संवैधानिक हक अधिकारों का हनन हुआ। परंतु विगत 10 वर्षों जल जंगल जमीन व जनजातीय अत्याचार अधिनियम कानून में बदलाव के प्रयास, गैर अनुसूचित जातियों को आदिवासी बनाने की सरकारी प्रयास,मणिपुर, हसदेव, लद्दाख के आदिवासी विरोधी घटनाक्रम,सरना धर्मकोड की अवहेलना, इतना ही नहीं,अबकी बार 400 पार के साथ संविधान बदलने की उद्घोषणाओं ने आग में घी का काम किया। आदिवासी समाज संवैधानिक रूप से वर्तमान शासन से असुरक्षित महसूस कर रहा है। अतः गोलबंद होकर सत्ता परिवर्तन हेतु मतदान कर रहा है।

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