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बड़ा प्रश्न …. आदिवासियों को मिटाने का षड्यंत्र है या कोई अन्य खेल….
जोहर मैं मंगला..
तथ्य(01): आदिकाल से आदिवासी परंपरागत स्वशासी व्यवस्था से शासित व प्रशासित है।
सनातन धर्म उस समय से है, जब गैर आदिवासी समाज में कोई संगठित धर्म अस्तित्व में नहीं था और क्योंकि जीवन जीने का कोई दूसरा तरीका या धर्म नहीं था, इसलिए इसे किसी नाम की जरुरत थी. इसके बाद धीरे-धीरे गैर आदिवासियों में संगठित धर्मों का निर्माण हुआ. सत्य को ही सनातन का नाम दिया गया. सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना हुआ है।
तथ्य 04: वनवासी शब्द की उत्पत्ति करीब 3000 वर्ष ईसा पूर्व “आर्या” के भारत आगमन के बाद हुई। पुरानीक काव्यो ग्रंथो किताबें में वनवासी का मतलब है “वन में रहने वाले” अर्थात “जंगल के निवासी” विशेषकर सभी प्रकार के जानवरों, बंदरों व विशेष कर बड़े प्रजाति के बंदर हनुमान के लिए उपयोग होते थे।
सीधा सरल प्रश्न व उसके उत्तर: आदिवासी “सरना” धर्मलंबी व इस देश के मूल निवासी “आदिवासी” है। वे ना तो “सनातन” है ना ही “वनवासी”।
सोचे,विचारे,मंथन करें..
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बड़ा प्रश्न …. आदिवासियों को मिटाने का षड्यंत्र है या कोई अन्य खेल….
जानने समझने के लिए देखते रहे…
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प्रकृति और विकृति का द्वंद!
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विश्लेषण हेतु अगला आवाज हमारे सहयोगी मंगला का…
जोहर मैं मंगला..
उपरोक्त विषय को हम दो भागो एवं चार तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करेंगे व सीधा एवं सरल निष्कर्ष भी निकलेंगे।
भाग 01: आदिवासी सरना है या सनातन ???
तथ्य(01): आदिकाल से आदिवासी परंपरागत स्वशासी व्यवस्था से शासित व प्रशासित है।
समाज में रूढी और प्रथा से धार्मिक कर्मकांड हेतु उरांव समाज में पाहन, संथाल समाज में नायकी,मुंडा व हो आदिवासी समुदायों में मानकी मुंडा, मानव सभ्यता की उत्पत्ति के कालखंड से ही विद्यमान है और वे समाज में व्यक्ति के जन्म, छटियारी, विवाह, मृत्यु संस्कार व गांवो के वार्षिक पर्व त्योहारों में पूजा पाठ प्राकृतिक सरना विधि से करते आ रहे हैं।इससे यह प्रमाणित होता है कि आदिवासी हिंदू वर्ण व्यवस्था के अधीन नहीं है व ना किसी अन्य धर्म के उपासक है।वे कबीलाई व्यवस्था के अधीन प्राकृतिक वादी है और आदिकाल से प्रकृतिवादी सारना धर्मलंबी है।
तथ्य 02: सनातन अर्थात आदिवासियों का धार्मिक तुष्टिकरण:
सनातन धर्म उस समय से है, जब गैर आदिवासी समाज में कोई संगठित धर्म अस्तित्व में नहीं था और क्योंकि जीवन जीने का कोई दूसरा तरीका या धर्म नहीं था, इसलिए इसे किसी नाम की जरुरत थी. इसके बाद धीरे-धीरे गैर आदिवासियों में संगठित धर्मों का निर्माण हुआ. सत्य को ही सनातन का नाम दिया गया. सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना हुआ है।
सनातन धर्म हिंदू धर्म का ही वैकल्पिक नाम है। जिसका उपयोग संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में किया जाता है।
हाल ही में सरना-सनातन को लेकर धार्मिक, सामाजिक, न्यायायिक और राजनीतिक बहस शुरू हो गई है। पर क्या वाकई भोले भाले आदिवासी यह जानते हैं कि संघ द्वारा सनातन का उपयोग आदिवासियों के धार्मिक तुष्टीकरण के लिए और हिंदुओं के समकक्ष उन्हें बतलाने हेतु भ्रम फैला कर राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ (RSS) द्वारा अपने पक्ष में गोलबंद करने का षड्यंत्र है।
भाग 02: आदिवासी: वनवासी है या आदिवासी
तथ्य 03: आदिवासी दो शब्द “आदी” और “वासी” से मिलकर बना है, इसका अर्थ इंडीजीनस यानी मूलवासी होता है। 2011 की जनगणना अनुसार भारत में आदिवासियों की जनसंख्या 08.6 प्रतिशत है। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए “अनुसूचित जनजातीय” शब्द का उपयोग होता है। वैज्ञानिक व आर्कियोलॉजिस्ट विभागों के आनेको शोधों के अनुसार भारत देश में द्रविडियन व आस्ट्रीक भाषा बोलने वाले आदिवासियों की सभ्यता 50 से 70 हजार वर्ष पुरानी है।
तथ्य 04: वनवासी शब्द की उत्पत्ति करीब 3000 वर्ष ईसा पूर्व “आर्या” के भारत आगमन के बाद हुई। पुरानीक काव्यो ग्रंथो किताबें में वनवासी का मतलब है “वन में रहने वाले” अर्थात “जंगल के निवासी” विशेषकर सभी प्रकार के जानवरों, बंदरों व विशेष कर बड़े प्रजाति के बंदर हनुमान के लिए उपयोग होते थे।
परंतु सन 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) के गठन के उपरांत संघ द्वारा आदिवासियों के संबोधन में वनवासी शब्द का उपयोग की की जाने लगी।
आदिवासी बहुल क्षेत्रो में संघ की शाखाओं द्वारा आदिवासियों के बीच पैट बनाने हेतु वनवासी शब्द का उद्बवोद करने लगे और वे धार्मिक तुष्टीकरण करते हुए भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के कहानियों में वनवासी (आदिवासियों) को उनके सेवक के रूप में प्रतिस्थापित करने लगे व हनुमान को इससे जोड़कर दर्शाने लगे,साथ ही
(क)वनवासी कल्याण केंद्र
(ख)वनवासी कल्याण आश्रम
(ग)वनवासी कल्याण परिषद
(घ) वनवासी सेवा संघ
जैसे उप समिति बनाकर संघ के विचारों व हिंदुत्व का प्रचार प्रसार करने लगे।
सीधा सरल प्रश्न व उसके उत्तर: आदिवासी “सरना” धर्मलंबी व इस देश के मूल निवासी “आदिवासी” है। वे ना तो “सनातन” है ना ही “वनवासी”।
तथ्य भी यही प्रमाणित करते हैं परंतु संघ उन्हें “सनातन”(हिंदू) व “वनवासी” संबोधन करके भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाने व भाजपा के वोट बैंक के रूप में आदिवासी समाज को गुमराह कर स्थापित करने के गुप्त एजेंडा लागू करने की षड्यंत्र कर रही है। जिसमें वे बहुत हद तक सफल होते दिखते हैं।
सोचे,विचारे,मंथन करें..
और प्रजातांत्रिक शक्तियों का उपयोग करते हुए मतदान जरूर करें! आपका एक वोट इन षड़यंत्रकारी शक्तियों से समाज की रक्षा कर सकता है।
जोहर टीवी भारतवर्ष के लिए समाचार संकलन व लेखक:संजय पाहन
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