सरहुल खद्दी महापर्व बाहा प्रकृतिक से जुड़ा आदिवासी का मुख्य त्यौहार है।
इसे आदिवासी प्रकृतिक नये वर्ष के रूप में मनातें है।
प्रकृतिक नियमों के अनुसार पेड़-पौधे पुराने फल,फूल,पत्तों को त्याग कर नये फल,फूल,पत्ते ग्रहण करते हैं। अतः आज के दिन पाहन( पुजारी) द्वारा पुजा-पाठ कर अपने पुरखों, इष्ट देवों धार्मेश,
माराड•बुरु,सिंगबोंगा को पांच तरह के पत्ते,फल,फूल,सब्जीयों अप्रित की जाती है। अर्पित होने के बाद ही समाज इन फल, फूल,सब्जीयों,पत्तो को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। ताकि आने वाले वर्षों के लिए यह पत्ते,फल,फूल,सब्जियां प्राकृतिक रूप से संरक्षित रह सके।
तत्पश्चात इन रूढ़िवादी कर्मकांड के बाद पाहन अपने इष्टदेवो को नमन करते हुए विनती व आराधना करते हुए यह कामना करते हैं कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पृथ्वी प्राकृतिक नियम अनुसार सुर्य का परिक्रमा इसी तरह करते रहें, ताकि समय पर वर्षा हो, गर्मी आए, सर्दी आए ताकि इस पवित्र धारती पर निवास करने वाले किड़े-मकोड़े, जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों को भोजन मिलता रहे।
नंदी -नालो को पानी मिले, पहाड़,जल, जंगल संरक्षित रहे ताकि धरती में जीवन का स्रोत बने रहें।
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