Home Tribals Culture News भारतीय चाय बागानों का इतिहास जाने चाय मजदूरों का सच…

भारतीय चाय बागानों का इतिहास जाने चाय मजदूरों का सच…

by Johar TV
0 comment

आज “जोहर टीवी भारतवर्ष: प्रकृति और विकृति का द्वंद, आपके सम्मुख आपकी “एक प्याली चाय” जो आपको
तरोताजा करती है,का दर्द भरी दास्तान पेश कर रहे है।
जब भी चाय पिए,एक बार जरूर सोचे, किस समाज का हृदयवितरक त्याग है, आपके “एक कप चाय” के पीछे…

असम टी कंपनी जो ईस्ट इंडिया कंपनी का अंग थी द्वारा 1841 से यानी 19वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 20वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी, बंगाल,असम व पूर्वोत्तर के राज्यों में चाय की खेती करने हेतु पूर्वी भारत यानी अब के झारखंड,उड़ीसा,छत्तीसगढ़ के तत्कालीन कोल,टाना भगत विद्रोह में सजा प्राप्त आदिवासी कैदी थे, उनमें से 652 मजबूत कदकटी के कैदियों को जबरन चाय की खेती हेतु ले जाया गया। लेकिन इनमें से अधिकतर मजदूर की मौत हैजा के कारण हो गई,जो बच्चे कूचे थे, वे बहुत कमजोर हो गए और वे मौका मिलते ही जंगल के रास्ते नेपाल,भूटान व बांग्लादेश भाग गए। इन परिस्थितियों से लड़ने व चाय की बागान बनाने में मजदूरों की उपलब्धता हेतु तत्कालीन ब्रिटिश कंपनी ने विभिन्न कानूनी हथकंडे अपनाते हुए 1859 में वर्कमेंस ब्रिच आफ कांट्रैक्ट एक्ट पारित किया गया था जिसमें गिरमिटिया मजदूरों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई थी 1870 में मजदूरों की भर्ती के लिए सरदारी प्रणाली शुरू किया गया उनमें से एक सरकार को सरदार के रूप में ग्राम चरिमा नागजुआ जिला लोहरदगा के स्वतंत्रता सेनानी वह किस सोहराय खुदी पहन को असम और बंगाल ले जाया गया चाय बागानों में मजदूरों का जीवन कठिन था बैरक में प्रत्येक चाय बागानों मजदूरों के पास अपनी निजी उपयोग के लिए मुश्किल से 25 वर्ग फुट का क्षेत्र था| मजदूरों को एक दिन भी अनुपस्थित नहीं रहने दिया जाता था मजदूरों को किसी तरह की व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं थी यहां तक की दूसरे चाय बागानों के मजदूरों से भी मिलने नहीं दिया जाता था चाय बागानों के मालिकों ने मजदूरों को जन्म दर बढ़ाने के लिए मजबूर किया ताकि प्रत्येक उद्यान पर्याप्त श्रम शक्ति जुटा सके गर्भपात सख्त वर्जित था 1865 से 1881 तक पुरुष मजदूरों को केवल ₹5 प्रतिमा और महिला मजदूरों को केवल ₹4 प्रतिमा भुगतान किया जाता था 1921 में कोचर के केसरिया चाय बागान की यूरोपीय बागान मालिकों ने मजदूर की हत्या कर दी क्योंकि उसने अपनी बेटी को एक रात के लिए बागान मालिक उप पत्नी के रूप में प्रदान करने से इनकार कर दिया था चाय बागान के मजदूरों को असम के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उच्च जाति के हिंदू बहुल नेताओं से भी कभी भी किसी भी प्रकार का सहायता नहीं मिला संथाल उरांव कुरुख और मुंडा लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके वृद्धो के कारण छोटा नागपुर क्षेत्र से अंग्रेजों द्वारा जबरन विस्थापित किया गया था अंग्रेजों का विरोध करने के कारण सजा के रूप में असम के चाय बागानों पर लाया गया था जिसके कारण असम भारत का एकमात्र राज्य है जहां संथाल मुंडा उरांव कुरुख भूमिज आदिवासियों को (ST) अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया गया है असम चाय बागान मजदूर संघ ने चाय बागान मजदूरों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है|

शोधकर्ता व लेखक
संजय पाहन

https://www.facebook.com/profile.php?id=61558397776979&mibextid=ZbWKwL

banner

You may also like

Leave a Comment

Subscribe My Newsletter For new Blog posts, tips & new Photos. Lets Stay updated.


At Johar TV, our mission is to be the voice of the tribal communities and bring their stories to the forefront. We are more than just a news outlet; we are dedicated to fostering positive change, empowerment, and the overall well-being of tribal people across the globe.

Edtior's Picks

Latest Articles

Copyright @ JoharTv 2024 All Right Reserved.

Designed and Developed by Brightcode